Kiran Bedi biography in Hindi
किरण बेदी का जीवन परिचय
अपनी पढ़ाई के दौरान किरण बेदी एक मेधावी छात्रा तो थीं ही, लेकिन टेनिस उनका जुनून था। वर्ष 1972 में उन्होंने एशिया की महिलाओं की लान टेनिस चैंपियनशिप जीती थी और इसी वर्ष उनका इण्डियन पुलिस अकादमी में प्रवेश हुआ था, जहाँ से 1974 में वह पुलिस अधिकारी के रूप में बाहर आई थीं। पुलिस सेवा में आने के पहले 1970 से 1972 तक किरण बेदी ने अध्यापन में बतौर लेक्चरर अपना काम शुरू किया था और इस बीच प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी करती रही थीं ।पुलिस सेवा के दौरान किरण बेदी ने बहुत से महत्त्वपूर्ण पद सम्भाले और कठिन काम कर दिखाए। 1977 में उन्होंने इण्डिया गेट दिल्ली पर अकाली और निरंकारियों के बीच उठ खड़े हुए सिख उपद्रव को जिस तरीके से नियन्त्रित किया वह पुलिस विभाग के रेकार्ड में एक मिसाल है। 1979 में वह पश्चिमी दिल्ली की डी.सी. पुलिस थीं। इस दौरान इन्होंने इलाके में चले आ रहे 200 पुराने शराब के अवैध धँधे को एकदम बन्द कराया और अपराधियों के लिए जीवनयापन के वैकल्पिक रास्ते सुझाए।
अपनी सख्ती तथा अनुशासनप्रियता के अलावा किरण बेदी ने पुलिस सेवा में कर्मचारियों के हित में भी बहुत काम किया। 1985 में वह मुख्यालय में बतौर डिप्टी कमिश्नर (DCP) नियुक्त थीं। वहाँ इन्होंने एक ही दिन में लम्बे समय से रुके हुए 1600 कर्मचारियों के प्रमोशन (पदोन्नति) के आर्डर जारी किए।
‘क्रेन’ बेदी
1983 में श्रीमती इन्दिरा गाँधी प्रधानमन्त्री के पद पर थीं और उस समय किसी खास काम से विदेश गई थीं । उनकी कार मरम्मत के लिए गैराज लाई गई थी और सड़क पर गलत साइड में खड़ी की गई थी । उन दिनों किरण बेदी की यह मुस्तैदी जोरों पर थी कि वह गलत जगहों पर खड़ी गाड़ियों को क्रेन से उठवा लिया करती थीं और जुर्माना अदा करके ही वह गाड़ियाँ वापस मिलती थीं । सरकारी गाड़ियाँ भी किरण की इस व्यवस्था से बची हुई नहीं थीं । उस मौके पर इन्दिरा गाँधी की कार का भी यही हश्र हुआ । वह उठवा ली गई और इसका नतीजा यह हुआ कि किरण बेदी का नाम ‘क्रेन’ बेदी मशहूर हो गया । लेकिन किरण बेदी पर इसका कोई असर नहीं पड़ा ।
Kiran Bedi और तिहाड़ जैल
किरण बेदी का 1993 का कार्यकाल उनके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण कहा जाता है । वह आई.जी. प्रिजन्स के रूप में जेलों की अधिकारी बनी। उन्होंने इस दौरान देश की एक बहुत बड़ी जेल तिहाड़ को आदर्श बनाने का फैसला किया। इस दौर में उन्होंने अपराधियों का मानवीयकरण शुरू करने के कदम उठाए । उन्होंने कहा कि वह जेल को आश्रम में बदल देंगी । किरण बेदी ने वहाँ योग, ध्यान, खेल-कूद सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ पढ़ने-लिखने की भी व्यवस्था की । नशाखोरी को इंसानी ढंग से नियन्त्रण में लाया गया । इस जेल के करीब दस हजार कैदियों में अधिकतर कैदी तो ऐसे थे, जिन पर कोई आरोप भी नहीं लगा था और वह बरसों से बन्द थे । उनके शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक विकास पर भी किरण बेदी ने ध्यान दिया । कैदियों ने जेल के भीतर से परीक्षाएँ दीं और योग्यता बढ़ाई । जेल में कविता तथा मुशायरों के जरिये कैदियों को एक नयापन दिया गया । किरण को उनके इस काम के लिए बहुत सराहना मिली । अभी किरण बेदी ने पुलिस विभाग के इण्डियन ब्यूरो ऑफ रिसर्च एण्ड डवलपमेंट में डायरेक्टर जनरल का पद सम्भाला है । वह संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘पीस कीपिंग’ विभाग की पुलिस एडवाईज्र भी हैं ।
संस्थान संचालन
अपने इस सरकारी काम के अतिरिक्त किरण बेदी दो दूसरी संस्थाएँ भी चलाती हैं । ‘नवज्योति’ तथा ‘इण्डियन वीजन फाउन्डेशन’ नशे की लत में गिरफ्त लोगों की जिन्दगी बदलने का काम करती हैं । इसमें इन लोगों को नशे से छुटकारे के अलावा उनके लिए रोजगार तथा त्रण आदि की व्यवस्था होती है, जिससे इनका पुनर्वास आसान हो जाता है।
नशाखोरी के नियन्त्रण तथा इससे ग्रस्त लोगों के हित में किरण बेदी द्वारा किए गए प्रयत्नों के लिए इन्हें संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा ‘सर्ज सोर्टिक मैमोरियल अवार्ड’ भी दिया गया । यह पुरस्कार इनकी NGO नवज्योति को 28 जून 1999 को दिया गया ।
Personal Life
किरण बेदी को उनकी निजी जिन्दगी में कुछ गहरे अनुभव हुए जिन्होंने किरण को बहुत सचेत बनाया । किरण बेदी की बड़ी बहन शशी का विवाह कनाडा स्थित एक हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर से हुआ । वहाँ जाकर शशी को पता चला कि वह डॉक्टर तो पहले से ही किसी अन्य महिला के साथ रह रहा है। इस स्थिति को शशि लम्बे समय तक चुपचाप सहती रही लेकिन किरण बेदी को इस घटना ने विशेष रूप से सतर्क कर दिया।
इस सतर्कता के कारण किरण बेदी ने दो बार विपरीत निर्णय लिया। पहली बार कुछ बातचीत के बाद पता चला कि उनकी बात ऐसे पुरुष से हो रही है, जो उनके कैरियर को कोई महत्त्व की बात नहीं समझता है और इस तरह से किरण को यह अपनी रुचि का सम्बन्ध नहीं लगा और उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया। दूसरी बार सम्बन्धित परिवार काफी दकियानूसी विचार का था, जो रूढ़ियों, परम्पराओं के अलावा दहेज में भी रुचि रखता था । किरण ने इसे भी अपनी स्वीकृति नहीं दी।
1972 में किरण का प्रेम ब्रज बेदी से टेनिस कोर्ट में हुआ और ये दोनों बिना किसी बैण्ड बाजे के एक मन्दिर में विवाह सूत्र में बँध गए। किरण और ब्रज दोनों ही महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति थे और दोनों के लिए निजी जीवन से ज्यादा महत्त्वपूर्ण इनका कर्मक्षेत्र था। ऐसे में इन दोनों ने स्वतन्त्र रूप से जीने का निर्णय ले लिया। जब कि इनका अन्तरंग जुड़ाव बना रहा। ऐसे में अकेले क्षणों में किरण ने कविताओं का सहारा लिया। ब्रज से मानसिक जुड़ाव बनाए रखा । किरण बेदी की एक बेटी है सानिया जिसका विवाह एक पत्रकार से हुआ है। रूज बिन एन. भरूच किरण बेदी के दामाद हैं, जो पत्रकारिता के साथ-साथ फिल्में भी बनाते हैं । अपने प्रशस्त कार्यक्षेत्र में किरण बेदी ने बहुत से पुरस्कार, सम्मान बटोरे।
Awards
1979 में उन्हें ‘प्रेसिडेन्ट्स गैलेन्टरी अवार्ड’ भी मिला 1980 में किरण बेदी ‘वुमन ऑफ द इयर’ चुनी गईं। 1995 में उन्हें महिला शिरोमणि का सम्मान मिला। उसी वर्ष उन्हें ‘फॉदर मैशिस्मो हयूमेनिटेरियन अवार्ड’ भी दिया गया। 1997 में वह ‘लॉयन ऑफ द ईयर’ घोषित हुईं। 1999 में उन्हें ‘प्राइड ऑफ इण्डिया’ का सम्मान मिला ।
Garv mahsus karane wali story hai kiran Bedi ki.
Thanks Rahul.
Easy to read
मुझे नही पता था कि किरण बेदी को क्रेन बेदी भी कहते है? अभी पता चला।
हा, किरण बेदी के प्रधानमंत्री की गाड़ी को हटवा देने के बाद से किरण बेदी को क्रेन बेदी कहा जाता है।
इनके जैसे अफसरों की जरुरत है देख को