Wilma Rudolph Story in Hindi विल्मा रुडोल्फ – विकलांगता से 3 ओलंपिक गोल्ड तक का सफर

Wilma Rudolph का जन्म 1939 में अमेरिका के टेनेसी राज्य में हुआ। विल्मा के पिता एक कुली का काम करते थे और माँ सेरवेंट का काम करती थी। Wilma को चार साल की उम्र मे पोलियो हो गया था और वे विकलांग हो गयी। अब विल्मा रूडोल्फ केलिपर्स के सहारे चलती थी। काफी मेहनत के बाद भी कोई अच्छा result नहीं निकालने पर डॉक्टर ने भी हार मानकर कह दिया की Wilma Rudolph कभी अपने पैरो पर चल नहीं सकेगी।
Wilma Rudolph को अब पोलियो हो जाने के कारण चलने मे बहुत दिक्कत और दर्द होता था तो उनकी माँ ने अपना काम छोड़ कर इलाज मे लग गयी। उनकी माँ सप्ताह मे दो दिन सबसे नजदीकी 50 मील दूर Hospital मे उन्हे लेकर जाती है बाकी के दिनो मे घर पर ही इलाज करती थी। विल्मा की माँ हमेशा उन्हे स्वयं को बेहतर समझने के लिए प्रेरित करती थी।
अब विल्मा का प्रवेश एक school मे करा दिया। पाँच सालो के इलाग चलने के बाद Wilma Rudolph की हालत मे सुधार आया एवं अब विल्मा ब्रेस पहनकर चलती थी। डॉक्टर की सलाह पर विल्मा बास्केट्बाल खेलने लगी। आखिरकार माँ का और विल्मा की लगन रंग लाई और विल्मा ने 11 साल की उम्र में अपने ब्रेस उतारकर पहली बार बास्केट्बाल खेली। ब्रेस उतार देने के बाद चलने के प्रयास में वह कई बार चोटिल हुयी एंव दर्द सहन करती रही लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी एंव लगातार कोशिश करती गयी। आखिर में जीत उसी की हुयी और एक-दो वर्ष बाद वह बिना किसी सहारे के चलने में कामयाब हो गई।
इसके बाद विल्मा की माँ ने उसके लिए एक कोच का इंतजाम किया। विल्मा की लगन और संकल्प को देखकर स्कुल ने भी उसका पूरा सहयोग किया। विल्मा पुरे जोश और लग्न के साथ अभ्यास करने लगी। विल्मा ने 1953 में पहली बार अंतर्विधालीय दौड़ प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इस प्रतियोगिता में वो आखरी स्थान पर रही। विल्मा ने अपना आत्मविश्वास कम नहीं होने दिया उसने पुरे जोर – शोर से अपना अभ्यास जारी रखा। आखिरकार आठ असफलताओं के बाद नौवी प्रतियोगिता में उसे जीत नसीब हुई। इसके बाद विल्मा ने पीछे मुड कर नहीं देखा वो लगातार बेहतरीन प्रदर्शन करती रही जिसके फलस्वरूप उसे 1960 के रोम ओलम्पिक मे देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला।
विल्मा का सामना एक ऐसी धाविका Jutta Heine से हुआ जिसे अभी तक कोई नहीं हरा सका था। पहली रेस 100 मीटर की थी जिसमे विल्मा ने Jutta Heineको हराकर स्वर्ण पदक जीत लिया एंव दूसरी रेस (200 मीटर) में भी विल्मा के सामने Jutta Heine ही थी इसमें भी विल्मा ने Jutta Heine को हरा दिया और दूसरा स्वर्ण पदक जीत लिया।
तीसरी दौड़ 400 मीटर की रिले रेस थी और विल्मा का मुकाबला एक बार फिर Jutta Heine से ही था। रिले में रेस का आखिरी हिस्सा टीम का सबसे तेज एथलीट ही दौड़ता है। लेकिन विल्मा की बहादुरी, मेहनत और लगन ने Jutta Heine को तीसरी बार भी हराया और अपना तीसरा गोल्ड मेडल जीता।
इस तरह Wilma Rudolph विश्व की सबसे तेज धविका बन गयी।
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